ऊं आधार शक्तपे नमः
ऊं कूमयि नमः
ऊं अनंतम नमः
ऊं पृथिव्यै नमः
ऊं श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नमः
गजाननाय महसे प्रत्यूहतिमिरच्छिदे ।
अपारकरुणापूरतरङ्गितदृशे नमः ॥
विघ्नरूप अन्धकार का नाश करनेवाले, अथाह करुणारूप जलराशि से तरंगति नेत्रों
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे ||
namastē sadā vatsalē mātṛbhūmē .
हे वात्सल्यमयी मातृभूमि, तुम्हें सदा प्रणाम!
O Loving Motherland!
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||
इस पूरे संसार के पालनहार, तीन नेत्र वाले
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिंगम् बुद्धिविवर्द्धनकारणलिंगम्।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥
मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो सभी प्रकार
न किञ्चिदपि कुर्वाणः सौख्यैर्दुःखान्यपोहति।
तत्तस्य किमपि द्रव्यं यो हि यस्य प्रियो जनः॥
अपनों के हेतु बिना कुछ किये
मा वनं छिन्धि सव्याघ्रं मा व्याघ्राः नीनशन्वनात्
वनं हि रक्ष्यते व्याघ्रैव्य्घ्रान् रक्षति काननम्।।
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Source ~ महाभारत - उद्योगपर्व:
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बाघ
उग्रायोग्रास्वरूपाय यजमानात्मने नमः।
महाशिवाय सोमाय नमस्त्वमृत मूर्तये ॥
हे उग्ररूपधारी यजमान सदृश आपको नमस्कार है ।
सोमरूप अमृतमूर्ति हे
धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते।।
धर्म को जाननेवाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब
अनाथस्य जगन्नाथ नाथस्त्वं मे न संशयः ।
यस्य नाथो जगन्नाथस्तस्य दुःखं कथं प्रभो ॥
जिनका इस दुनिया में
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।
चित्त अर्थात अन्तःकरण की वृत्तियों का निरोध सर्वथा रुक जाना योग है।
Yoga is restraining the mind-stuff
जनकश्चोपनेता च यक्ष विद्यां प्रयच्छति।
अन्नदाता भयत्राता पश्चैते पितरः स्मृताः।।
जन्मदाता, उपनयन संस्कारकर्ता, विद्या प्रदान करने वाला, अन्नदाता
मनोबुद्ध्यहङ्कारचित्तानि नाहं न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्रणनेत्रे।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुश्चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥
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परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥
सत्पुरुषों की रक्षा करने के लिए, दुष्कर्म करने वालों
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः केदारमीशं शिवमेकमीडे॥
शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्।
दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्।।
शौर्य, तेज, धृति, दाक्ष्य (दक्षता), युद्ध से पलायन न
अपने द्वारा अपना उद्धार करे, अपना पतन न करे क्योंकि आप ही अपना मित्र है और
ॐ हम जमदग्नि के पुत्र को जानते हैं। हम उस महावीर का ध्यान करते हैं। वह
जिनकी मन के समान गति और वायु के समान वेग है, जो परम जितेन्दिय और बुद्धिमानों