येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥ जिस रक्षा सूत्र से
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् | उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् || इस पूरे संसार के पालनहार, तीन नेत्र वाले
न किञ्चिदपि कुर्वाणः सौख्यैर्दुःखान्यपोहति। तत्तस्य किमपि द्रव्यं यो हि यस्य प्रियो जनः॥ अपनों के हेतु बिना कुछ किये
उग्रायोग्रास्वरूपाय यजमानात्मने नमः। महाशिवाय सोमाय नमस्त्वमृत मूर्तये ॥ हे उग्ररूपधारी यजमान सदृश आपको नमस्कार है । सोमरूप अमृतमूर्ति हे