प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा।
शिक्षको बोधकश्वैव षडेते गुरवः स्मृताः॥
प्रेरणा देनेवाले, सूचना देनेवाले, सच बतानेवाले, रास्ता दिखानेवाले, शिक्षा
संस्कृतदिवसस्य हार्दाः शुभेच्छाः
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संस्कृतं नाम दैवी वाग् अन्वाख्याता महर्षिभिः॥
संस्कृत एक महान भाष्य है जो महान हस्तियों द्वारा
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
जिस रक्षा सूत्र से
मां ब्रह्मचारिणी देवी (दृतीय दिवस)
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
हे देवी ब्रह्मचारिणी, जो हाथों में माला और
मां शैलपुत्री देवी (प्रथम दिवस)
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्॥
उन देवी को
ऊं आधार शक्तपे नमः
ऊं कूमयि नमः
ऊं अनंतम नमः
ऊं पृथिव्यै नमः
ऊं श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नमः
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा।
शिक्षको बोधकश्वैव षडेते गुरवः स्मृताः॥
प्रेरणा देनेवाले, सूचना देनेवाले, सच बतानेवाले, रास्ता दिखानेवाले, शिक्षा
गजाननाय महसे प्रत्यूहतिमिरच्छिदे ।
अपारकरुणापूरतरङ्गितदृशे नमः ॥
विघ्नरूप अन्धकार का नाश करनेवाले, अथाह करुणारूप जलराशि से तरंगति नेत्रों
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥
जो मुझे
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे ||
namastē sadā vatsalē mātṛbhūmē .
हे वात्सल्यमयी मातृभूमि, तुम्हें सदा प्रणाम!
O Loving Motherland!
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||
इस पूरे संसार के पालनहार, तीन नेत्र वाले
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिंगम् बुद्धिविवर्द्धनकारणलिंगम्।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥
मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो सभी प्रकार
न किञ्चिदपि कुर्वाणः सौख्यैर्दुःखान्यपोहति।
तत्तस्य किमपि द्रव्यं यो हि यस्य प्रियो जनः॥
अपनों के हेतु बिना कुछ किये
मा वनं छिन्धि सव्याघ्रं मा व्याघ्राः नीनशन्वनात्
वनं हि रक्ष्यते व्याघ्रैव्य्घ्रान् रक्षति काननम्।।
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Source ~ महाभारत - उद्योगपर्व:
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बाघ
उग्रायोग्रास्वरूपाय यजमानात्मने नमः।
महाशिवाय सोमाय नमस्त्वमृत मूर्तये ॥
हे उग्ररूपधारी यजमान सदृश आपको नमस्कार है ।
सोमरूप अमृतमूर्ति हे
धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते।।
धर्म को जाननेवाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब
अनाथस्य जगन्नाथ नाथस्त्वं मे न संशयः ।
यस्य नाथो जगन्नाथस्तस्य दुःखं कथं प्रभो ॥
जिनका इस दुनिया में
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।
चित्त अर्थात अन्तःकरण की वृत्तियों का निरोध सर्वथा रुक जाना योग है।
Yoga is restraining the mind-stuff