न किञ्चिदपि कुर्वाणः सौख्यैर्दुःखान्यपोहति।
तत्तस्य किमपि द्रव्यं यो हि यस्य प्रियो जनः॥
अपनों के हेतु बिना कुछ किये भी और केवल उनके सान्निध्य से दुःखों को दूर भगाया जा सकता है। ऐसा है प्रेम का द्रव्य (धन)|
Loved ones, without even doing anything & just by their proximity, drive away sorrows. Such is the substance (wealth) of love.