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मुक्ति के लिए तो कर्म का परित्याग तथा भक्तिमय-कर्म दोनों ही उत्तम हैं। किन्तु इन दोनों
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निःसंदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता क्योंकि