पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते। न हि कल्याणकृत्कश्चिद् दुर्गतिं तात गच्छति॥

हे पृथापुत्र अर्जुन ! उसका न इस लोक में और न परलोक में ही विनाश होता है। क्योंकि हे प्रिय ! कल्याणकारी कर्म करने वाला (योग पथ में चलने वाला) कोई भी मनुष्य दुर्गति को नहीं प्राप्त होता।

O son of Pritha, neither in this life nor hereafter is there destruction for him; never does anyone who practises good, O beloved, come to woe.

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