![ये वामी रोचने दिवो ये वा सूर्यस्य रश्मिषु। येषामपसु सदस्कृतं तेभ्य: सर्वेभ्यो: नम:।। सूर्य की किरणों में सूर्य की ओर मुख किए हुए चला करते हैं तथा जो सागरों में समूह रूप से रहते हैं, उन सर्पों को नमस्कार है। तीनों लोकों में जो भी सर्प हैं, उन सब को नमस्कार करते हैं।](https://sanskritforus.com/wp-content/uploads/2023/09/367440308_758098932994813_9080782044978185398_n.jpeg)
![ये वामी रोचने दिवो ये वा सूर्यस्य रश्मिषु। येषामपसु सदस्कृतं तेभ्य: सर्वेभ्यो: नम:।। सूर्य की किरणों में सूर्य की ओर मुख किए हुए चला करते हैं तथा जो सागरों में समूह रूप से रहते हैं, उन सर्पों को नमस्कार है। तीनों लोकों में जो भी सर्प हैं, उन सब को नमस्कार करते हैं।](https://sanskritforus.com/wp-content/uploads/2023/09/367440308_758098932994813_9080782044978185398_n.jpeg)
ये वामी रोचने दिवो ये वा सूर्यस्य रश्मिषु।
येषामपसु सदस्कृतं तेभ्य: सर्वेभ्यो: नम:।।
सूर्य की किरणों में सूर्य की ओर मुख किए हुए चला करते हैं तथा जो सागरों में समूह रूप से रहते हैं, उन सर्पों को नमस्कार है। तीनों लोकों में जो भी सर्प हैं, उन सब को नमस्कार करते हैं।