लसति भगिनि! सूत्रं मन्मणौ जाह्नवीव
ननु वहति चकास्ति ब्रह्मदेशे मदीये।
मलिनमृदवधात्री नर्मदा राष्ट्रमातुः
स्मृतिरिव च पुनाति प्रीतिबन्धस्त्वदीयः।।
हे भगिनि! मेरी कलाई पर यह सूत्र ऐसे शोभा पा रहा है जैसे मेरे ब्रह्मदेश (उत्तर प्रदेश) में जैसे गङ्गा बहती है और चमकती है ना! वैसे ही!और जैसे नर्मदा भारतमाता की मिट्टी के कालेपन का शोधन करती है, तुम्हारा यह प्रेम का बन्धन भी मुझे दोषों से स्मृति के भांति मुक्त करता है।