अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।
सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥
मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं| मैं चैतन्य के रूप में सब जगह व्याप्त हूं, सभी इन्द्रियों में हूं| न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं| मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
I am devoid of duality, my form is formlessness, I exist everywhere, pervading all senses, I am neither attached, neither free nor captive, I am the form of consciousness and bliss, I am the eternal Shiva.