य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।।
जो मनुष्य इस आत्मा को हत्या करने वाला समझता है और जो इसे मरा हुआ मानता है वे दोनों ही इसके यथार्थ स्वरूप को नहीं जानते । न यह किसी की हत्या करता है और न हत ही होता है।
He who regards this (the soul) as a slayer, and he who thinks it is slain, both of them fail to perceive the truth. It does not slay, nor is it slain.
Source – भगवद् गीता अध्याय २ श्लोक १९