प्रेम दूरस्थोऽपि न दूरस्थो यो यस्य मनसि स्थित:। यो यस्य हॄदये नास्ति समीपस्थोऽपि दूरत:॥ sudhir Posted on March 26, 2022 0 जो जिसके मन में बसता है वह उससे दूर होकर भी दूर नहीं होता और जिससे
प्रेम नदीतलेऽश्मने मे त्वं वारीववाहिनी यथा। शीतेन शिथिलायार्कः स्थिरार्णवाय पूर्णिमा ।। sudhir Posted on March 11, 2022 0 मैं एक पत्थर हूँ जो नदी के तल पर पड़ा है और तुम मेरे लिए पानी